4 उसी रात को यहोवा का यह वचन नातान के पास पहुँचा, 5 “जाकर मेरे दास दाऊद से कह, ‘यहोवा यह कहता है, कि क्या तू मेरे निवास के लिये घर बनवाएगा? 6 जिस दिन से मैं इस्राएलियों को मिस्र से निकाल लाया आज के दिन तक मैं कभी घर में नहीं रहा, तम्बू के निवास में आया-जाया करता हूँ†आया-जाया करता हूँ: अर्थात् मिलापवाला तम्बू न्यायियों के युग में लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान में स्थानान्तरित होता रहता था उसका एक निश्चित स्थान नहीं था। । 7 जहाँ-जहाँ मैं समस्त इस्राएलियों के बीच फिरता रहा, क्या मैंने कहीं इस्राएल के किसी गोत्र से, जिसे मैंने अपनी प्रजा इस्राएल की चरवाही करने को ठहराया है, ऐसी बात कभी कही, कि तुम ने मेरे लिए देवदार का घर क्यों नहीं बनवाया?’ 8 इसलिए अब तू मेरे दास दाऊद से ऐसा कह, ‘सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि मैंने तो तुझे भेड़शाला से, और भेड़-बकरियों के पीछे-पीछे फिरने से, इस मनसा से बुला लिया कि तू मेरी प्रजा इस्राएल का प्रधान हो जाए। (भज. 78: 71) 9 और जहाँ कहीं तू आया गया, वहाँ-वहाँ मैं तेरे संग रहा, और तेरे समस्त शत्रुओं को तेरे सामने से नाश किया है; फिर मैं तेरे नाम को पृथ्वी पर के बड़े-बड़े लोगों के नामों के समान महान कर दूँगा। 10 और मैं अपनी प्रजा इस्राएल के लिये एक स्थान ठहराऊँगा, और उसको स्थिर करूँगा, कि वह अपने ही स्थान में बसी रहेगी, और कभी चलायमान न होगी; और कुटिल लोग उसे फिर दुःख न देने पाएँगे, जैसे कि पहले करते थे, 11 वरन् उस समय से भी जब मैं अपनी प्रजा इस्राएल के ऊपर न्यायी ठहराता था; और मैं तुझे तेरे समस्त शत्रुओं से विश्राम दूँगा। यहोवा तुझे यह भी बताता है कि यहोवा तेरा घर बनाए रखेगा। 12 जब तेरी आयु पूरी हो जाएगी, और तू अपने पुरखाओं के संग जा मिलेगा, तब मैं तेरे निज वंश को तेरे पीछे खड़ा करके उसके राज्य को स्थिर करूँगा। 13 मेरे नाम का घर वही बनवाएगा, और मैं उसकी राजगद्दी को सदैव स्थिर रखूँगा। (1 राजा. 5:5) 14 मैं उसका पिता ठहरूँगा, और वह मेरा पुत्र ठहरेगा। यदि वह अधर्म करे, तो मैं उसे मनुष्यों के योग्य दण्ड से, और आदमियों के योग्य मार से ताड़ना दूँगा। (2 कुरि. 6:18, इब्रा. 1:5, इब्रा. 12:7) 15 परन्तु मेरी करुणा उस पर से ऐसे न हटेगी, जैसे मैंने शाऊल पर से हटा ली थी और उसको तेरे आगे से दूर किया था। 16 वरन् तेरा घराना और तेरा राज्य मेरे सामने सदा अटल बना रहेगा; तेरी गद्दी सदैव बनी रहेगी।’ ” (भज. 89:36,37, लूका 1:32,33) 17 इन सब बातों और इस दर्शन के अनुसार नातान ने दाऊद को समझा दिया।
- a नातान नामक भविष्यद्वक्ता: दाऊद के जीवन में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। उसका विशिष्ट पद भविष्यद्वक्ता का था गाद भविष्यदृष्टा।
- b आया-जाया करता हूँ: अर्थात् मिलापवाला तम्बू न्यायियों के युग में लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान में स्थानान्तरित होता रहता था उसका एक निश्चित स्थान नहीं था।
- c यह तेरी दृष्टि में छोटी सी बात हुई: दाऊद अपने आश्चर्य को व्यक्त करता है कि वह जन्म से ऐसा अकिंचन है वरन् अपनी स्वयं की दृष्टि में भी नगण्य है, उसे सिंहासन ही नहीं मिला, उसके वंश को भी सदाकाल का उत्तराधिकार मिला कि मानो वह एक महान पुरुष है।
- d इस कारण तेरे दास को तुझ से यह प्रार्थना करने का हियाव हुआ है: परमेश्वर के लोगों के लिए उसकी प्रतिज्ञाएँ प्रार्थना का सच्चा मार्गदर्शन हैं। परमेश्वर ने जो देने की प्रतिज्ञा की हैं, कितनी भी बड़ी बात हो हम उसे माँगने का साहस कर सकते हैं। इस पद में और अग्रिम दो पदों में परमेश्वर के अनुग्रह के धन के प्रति आश्चर्य प्रगट करता है।