2 फिर शाऊल ने इस्राएलियों में से तीन हजार पुरुषों को अपने लिये चुन लिया; और उनमें से दो हजार शाऊल के साथ मिकमाश में और बेतेल के पहाड़ पर रहे, और एक हजार योनातान के साथ बिन्यामीन के गिबा में रहे; और दूसरे सब लोगों को उसने अपने-अपने डेरे में जाने को विदा किया। 3 तब योनातान ने पलिश्तियों की उस चौकी को जो गेबा में थी मार लिया; और इसका समाचार पलिश्तियों के कानों में पड़ा। तब शाऊल ने सारे देश में नरसिंगा फुँकवाकर यह कहला भेजा, “इब्री लोग सुनें।” 4 और सब इस्राएलियों ने यह समाचार सुना कि शाऊल ने पलिश्तियों की चौकी को मारा है, और यह भी कि पलिश्ती इस्राएल से घृणा करने लगे हैं। तब लोग शाऊल के पीछे चलकर गिलगाल में इकट्ठे हो गए।
5 पलिश्ती इस्राएल से युद्ध करने के लिये इकट्ठे हो गए, अर्थात् तीस हजार रथ, और छः हजार सवार, और समुद्र तट के रेतकणों के समान बहुत से लोग इकट्ठे हुए; और बेतावेन के पूर्व की ओर जाकर मिकमाश में छावनी डाली। 6 जब इस्राएली पुरुषों ने देखा कि हम सकेती में पड़े हैं (और सचमुच लोग संकट में पड़े थे), तब वे लोग गुफाओं, झाड़ियों, चट्टानों, गढ़ियों, और गड्ढों में जा छिपे। 7 और कितने इब्री यरदन पार होकर गाद और गिलाद के देशों में चले गए; परन्तु शाऊल गिलगाल ही में रहा, और सब लोग थरथराते हुए उसके पीछे हो लिए।
8 वह शमूएल के ठहराए हुए समय*शमूएल के ठहराए हुए समय: शमूएल ने सात दिनों के बाद में का समय नियुक्त किया था। यह विश्वास और आज्ञाकारिता की परीक्षा का समय था जिसमें इस समय शाऊल चूक गया। , अर्थात् सात दिन तक बाट जोहता रहा; परन्तु शमूएल गिलगाल में न आया, और लोग उसके पास से इधर-उधर होने लगे। 9 तब शाऊल ने कहा, “होमबलि और मेलबलि मेरे पास लाओ।” तब उसने होमबलि को चढ़ाया। 10 जैसे ही वह होमबलि को चढ़ा चुका, तो क्या देखता है कि शमूएल आ पहुँचा; और शाऊल उससे मिलने और नमस्कार करने को निकला। 11 शमूएल ने पूछा, “तूने क्या किया?” शाऊल ने कहा, “जब मैंने देखा कि लोग मेरे पास से इधर-उधर हो चले हैं, और तू ठहराए हुए दिनों के भीतर नहीं आया, और पलिश्ती मिकमाश में इकट्ठे हुए हैं, 12 तब मैंने सोचा कि पलिश्ती गिलगाल में मुझ पर अभी आ पड़ेंगे, और मैंने यहोवा से विनती भी नहीं की है; अतः मैंने अपनी इच्छा न रहते भी होमबलि चढ़ाया।” 13 शमूएल ने शाऊल से कहा, “तूने मूर्खता का काम किया है†तूने मूर्खता का काम किया है: शाऊल जितनी भी परिस्थितियों और संकटों से अवगत था वे सब परमेश्वर की दृष्टि में थे और परमेश्वर ने उसे शमूएल के आने तक प्रतिक्षा करने की आज्ञा दी थी। यह भी स्वेच्छा की अवज्ञा का पाप था जो पुनः उभरा और उसका दण्ड कठोर था; तूने अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा को नहीं माना; नहीं तो यहोवा तेरा राज्य इस्राएलियों के ऊपर सदा स्थिर रखता। 14 परन्तु अब तेरा राज्य बना न रहेगा; यहोवा ने अपने लिये एक ऐसे पुरुष को ढूँढ़ लिया है जो उसके मन के अनुसार है; और यहोवा ने उसी को अपनी प्रजा पर प्रधान होने को ठहराया है, क्योंकि तूने यहोवा की आज्ञा को नहीं माना।” (प्रेरि. 13:22)
15 तब शमूएल चल निकला, और गिलगाल से बिन्यामीन के गिबा को गया। और शाऊल ने अपने साथ के लोगों को गिनकर कोई छः सौ पाए।
19 इस्राएल के पूरे देश में लोहार कहीं नहीं मिलता था‡लोहार कहीं नहीं मिलता था: यह भयानक अन्तमार्गों का परिणाम था जिनकी चर्चा पिछले पद में की गई है। ऐसा पलिश्तियों ने इसलिए किया था कि उनकी विजय अटल रहे। , क्योंकि पलिश्तियों ने कहा था, “इब्री तलवार या भाला बनाने न पाएँ;” 20 इसलिए सब इस्राएली अपने-अपने हल की फाल, और भाले, और कुल्हाड़ी, और हँसुआ तेज करने के लिये पलिश्तियों के पास जाते थे; 21 परन्तु उनके हँसुओं, फालों, खेती के त्रिशूलों, और कुल्हाड़ियों की धारें, और पैनों की नोकें ठीक करने के लिये वे रेती रखते थे। 22 इसलिए युद्ध के दिन शाऊल और योनातान के साथियों में से किसी के पास न तो तलवार थी और न भाला, वे केवल शाऊल और उसके पुत्र योनातान के पास थे। 23 और पलिश्तियों की चौकी के सिपाही निकलकर मिकमाश की घाटी को गए।
<- 1 शमूएल 121 शमूएल 14 ->- a शमूएल के ठहराए हुए समय: शमूएल ने सात दिनों के बाद में का समय नियुक्त किया था। यह विश्वास और आज्ञाकारिता की परीक्षा का समय था जिसमें इस समय शाऊल चूक गया।
- b तूने मूर्खता का काम किया है: शाऊल जितनी भी परिस्थितियों और संकटों से अवगत था वे सब परमेश्वर की दृष्टि में थे और परमेश्वर ने उसे शमूएल के आने तक प्रतिक्षा करने की आज्ञा दी थी। यह भी स्वेच्छा की अवज्ञा का पाप था जो पुनः उभरा और उसका दण्ड कठोर था
- c लोहार कहीं नहीं मिलता था: यह भयानक अन्तमार्गों का परिणाम था जिनकी चर्चा पिछले पद में की गई है। ऐसा पलिश्तियों ने इसलिए किया था कि उनकी विजय अटल रहे।